Friday, October 21, 2011

झिलमिल गुफा पार्ट-2

भाइयो ये मेरी ब्लॉग झिलमिल गुफा पार्ट-१ का ही हिस्सा मैं इसको भी उसी मैं लिखना चाहता था लेकिन कुछ तकनिकी खराबी के कारण नहीं लिख पाया था या ये कह लीजिये कि मुझे अभी ब्लॉग्गिंग का अनुभव नहीं है ।

खैर हम पूरे दिन चलते चलते अब शाम को ४.०० बजे झिलमिल गुफा पर थे, हमने सुबह १०.३० पर अपनी पैदल यात्रा शुरू करी थी जिसमे अभी तक हम ३-४ अद्रश्य झरने जिनका सिर्फ गिरता हुआ पानी ही देख सके थे, पार्वती मंदिर देख लिया था
नीलकंठ महादेव जी का मंदिर देख लिया था एक अति सुन्दर छोटी सी शिवलिंग है जो चांदी के बने हुए घेरे के बीच मैं विराजमान है
एक बार को तो इस शिवलिंग को देख कर मन ने कहा था कि भोलेनाथ तुम्हे इस ऊँचाई पर ही मजा आया था
शायद भोलेनाथ से नाराज होकर ही पार्वती जी उनसे भी ज्यादा ऊँचाई पर जाकर विराजमान हो गयी,
पार्वती मंदिर है तो नीलकंठ के पास ही, लेकिन बहुत ऊँचाई पर है

पर हम तो इन सबको देख कर पहुँच चुके थे झिलमिल गुफा, कितनी शान्ति थी यहाँ मन कर रहा था कि बस यही रह जाऊं लेकिन ये मुमकिन ना था।
झिलमिल गुफा से ५ मिनट पैदल चल कर आगे है गणेश गुफा, मेरा यकीन नहीं है तो देख लो



बस इस बोर्ड को पड़ कर मन करा कि चलो गणेश गुफा भी हो जाए लेकिन शाम के ४.३० बज गए थे और वहाँ अँधेरा होने लगा था क्यूंकि एक तो इतने पेड़ थे ऊपर से पच्शिम दिशा मैं ही ऊँचा सा पर्वत तो ऐसा लग रहा था जैसे कि ६ बज गए हो।
जो दिल्ली के ३ बन्दे थे वो भी तब तक हमारे साथ ही थे तो उनसे पूछा कि तुम चलोगे तो उन्होंने हाँ कर दी तो थोड़ी हिम्मत आ गयी, उस छोटे से रास्ते मैं ऐसे दुर्लभ किस्म के द्रश्य थे कि बस क्या बताऊँ उन्हें शब्दों मैं नहीं लिखा जा सकता। थोडा सा ही चले थे कि गणेश गुफा आ गयी वहाँ एक बाबा बैठे हुए थे उनसे राम राम करी और मंदिर के दर्शन करे।
आप भी दर्शन कीजिए गणेश गुफा मैं विराजमान गणेश जी के



मैंने भी फोटो खिचवा ही लिए ना जाने कब दुवारा आना हो गणेश जी कि गुफा मैं




अब शाम के पांच बजकर पंद्रह मिनट हो चुके थे और दिन चुप गया था हम लोगो के लिए क्यूंकि सूरज हमे दिख नहीं रहा था अब लौटना भारी पड़ने लगा तभी अचानक नीरज बाबू के ब्लॉग मैं पड़ा हुआ वो शोर्टकट रास्ता याद आया था तो थोडा रिस्की लेकिन टाइम बहुत बच जाता उस से लौटने पर, हमने गणेश गुफा से लौटते मैं झिलमिल गुफा पर चाय पीने का सोचा क्यूंकि थक कर चूर हुए जा रहे थे चाय पीते पीते चाय वाले से ही पूछ लिया कि यहाँ से कोई शोर्ट कट नहीं है क्या नीचे जाने के लिए उसने बताया कि है तो सही लेकिन अब उस रास्ते से मत जाना क्यूंकि अँधेरा होने वाला है भालू हाथी शेर सांप कुछ भी मिल सकता है तुम्हे रास्ता भी नहीं मालूम और अगर रास्ता भटक गए तो राम नाम सत्य है सोचा कि अगर ऐसी बात है तो यहाँ से पहले निकलो आगे जो होगा देखा जाएगा
अब लौटने मैं ज्यादा तेज चल रहे थे डर था कि कहीं भालू ना आ जाए मैंने तो डर के मारे के डंडा भी हाथ मैं ले लिया था कि अब आ जाए देख लूँगा भालू को भी


देखा मेरा लठ थी तो डंडी ही लेकिन बहुत मजबूत थी मेरे साथ इस फोटो मैं सिद्दार्थ है जोकि घर से ये तय कर के गया था कि बद्रीनाथ जी जायेंगे लेकिन झिलमिल गुफा देख कर बहुत खुश था इस यात्रा मैं मेरे दुसरे साथी रहे संतोष बाबू


ये तो कुछ ज्यादा ही खुश थे पहाड़ों की पैदल यात्रा करके पर इनके जूते साथ छोड़ गये लौट ते मैं फट गए
नीलकंठ पर लौटते मैं दर्शन करे तब तक ६ बज चुके थे अब हमने पैदल के वजाय जीप से लौटने मैं ही भलाई समझी और जीप मैं बैठ गए वापस लक्ष्मण झूला आ गए हमने जीप वाले से कहा कि हमे राम झूला जाना है तो वो भला आदमी हमे रामझूला तक ले आया

रामझूला से अपने अपने बैग लिए और रामझूला पार करके टेम्पो पकड़ा हरिद्वार बस स्टैंड के लिए , बस स्टैंड पर आकर देखा कि मथुरा कि बस है या नहीं पता चला कि १० बजे कि बस है हम तो पीछे कि तीन सीट पकड़ कर चिपक गए, ९.४० जो हो चुकी थी खाना कुछ खाया नहीं था तो बैग बस मैं रख कर पास मैं ही एक रेस्टोरेंट मैं राजमा चावल खाए और सही ९.५८ पर बस मैं आ गये लेकिन कम्बक्त १० बजकर १० मिनट पर चली जिसकी बजह से हम खा भी नहीं पाए सही से
फिर तो बस के चलने के बाद सिर्फ ये याद था कि टिकेट ले ली है बाकी कब नीद आ गयी पता ही नहीं चला नीद खुली अलीगढ मैं आकर और सुबह ७ बज कर १५ मिनट पर मैं अपने घर पर था।

इति श्री प्रथम यात्रा ये समापन:






Thursday, October 20, 2011

झिलमिल गुफा पार्ट-1

अक्टूबर कि सुबह होटल के रूम मैं ही तय कर लिया कि आज नीलकंठ महादेव और झिलमिल गुफा देखने जायेंगे पैदल पैदल........
नीरज जाट कि पैदल यात्रा का भूत जो सवार था अपने ऊपर..... सो सुबह सुबह तैयार होकर होटल छोड़ दिया था सुबह ही क्यूंकि आज शाम को तो अपने अपने घर वापस लौटना था तो क्यूँ होटल का किराया अपने सर पर लेते ...
होटल से बाहर निकल कर एक ढाबा कम दुकान ज्यादा पर मस्त आलू के परांठे चाय के साथ खाए और चल दिए राम झूला कि ओर क्यूंकि हमने उस ढाबा कम दुकान ज्यादा से पूछा था कि नीलकंठ जी के लिए पैदल रास्ता कहाँ से है तो उसने ही बताया था कि राम झूला से गीता आश्रम के सामने से रास्ता सीधा नीलकंठ जी को जाता है, उसने हमे पैदल जाने से मना भी किया था कि इन दिनों मैं रास्ता खाली रहता है बहुत कम लोग जाते है इस रास्ते से, लंगूर भी बहुत होते है तो तुम जीप से जाओ,
लेकिन हम कहाँ मानने वाले थे
पहुँच गए राम झूला, लेकिन अब हमारे साथ एक प्रॉब्लम थी कि हम तीनो कि पीठ पर अपने अपने बैग लादे हुए थे जिनको साथ लेकर ऊपर चढ़ना बेहद कस्टकारी हो सकता था तो हमने सोचा कि इन बैग को किसी चाय वाले कि दुकान पर रख देते है शाम को लौटते समय ले लेंगे. एक चाय वाले से बात करी तो उसने मना कर दी लेकिन भला हो उसका कि उसने हमे गीता आश्रम का सुझाव दे दिया, लपक के गीता आश्रम पहुंचे, वहाँ अपने अपने बैग रखे प्रत्येक बैग के 10 रूपये लगे, गीता आश्रम शाम को 10 बजे बंद हो जाता है तो उन्होंने हमे बता दिया कि रात को १० अजे से पहले जाना, बैग से पानी कि बोतल साथ ले ली, कैमरा तो पहले से ही जेब मैं था अपना आई कार्ड जेब मैं ही रख लिया बैग से निकाल कर, और चल दिए हम तीनो नीलकंठ महादेव और झिलमिल गुफा देखने, करीब करीब किलो मीटर जाने के बाद मेरा मन करा कि यारो अब तो एक फोटो हो जाए कैमरा निकल कर ५-फोटो दे मारे. अचानक मुझे याद आया कि मैं कैमरे के सेल बैग मैं ही भूल आया हूँ जो मैंने पिछली रात को बहुत मेहनत करके चार्ज किये थे ( हुआ यूँ था कि जिस होटल मैं हम रुके थे उसके लाइट के बोर्ड मैं पॉवर सोकेट लूज था जिसकी वजह से चार्जर टीक से लग नहीं प् रहा था ) खैर एक बार को तो मन मैं आया कि वापस जाकर सेल ले आऊं फिर सोचा रहने दो अब तो जब तक सेल चलेंगे तब तक देखा जाएगा नहीं तो मोबाइल तो था ही फुल चार्ज,
बस आगे चल दिए थोडा सा ही चले थे कि एक रास्ते का बोर्ड लगा हुआ था


मुझे लगा कि बस थोडा ही ऊपर होगा लेकिन मुश्किल से ५०० मीटर ऊपर कि तरफ चलने पर मुझे लगा कि मैंने गलती कर ली पैदल आकर थोड़ी देर बैठा और सोचने लगा

सोच ही रहा था कि पीछे से एक बिहारी दम्पति आती हुयी दिखाई दी। इस फोटो मैं जो पीछे औरत है उसके सर पर उसका बैग रखा है और वो बड़े आराम से बिना थके चले जा रही थी और इसके पति कि गोद मैं एक बच्चा था तो मैंने सोचा कि क्या मैं इनसे भी गया गुजरा हूँ जो इतनी जल्दी थक गया बस फिर क्या था
उठा और चलना शुरू कर दिया लौटने का विचार मन से त्याग दिया मन मैं ये सोचा कि इतनी दूर आने के बाद सिर्फ इसलिए नहीं लौटूंगा कि चडाई बहुत थी इसलिए पैदल नहीं गया।
थोड़ी सी ऊपर जाने पर एक नीबू पानी कि दूकान आई तो जान मैं जान आई कि कुछ तो है इन पहाड़ो मैं...

गिलास नीबू पानी अपनी बोतल मैं ही करवा लिया.... १० रूपये प्रति गिलास था लेकिन वो मुझे उस पहाड़ पर महंगा नहीं लगा.... उस दुकान के पास ही दो बड़े बड़े पत्थर ऐसे पड़े हुए थे जैसे लग रहा था कि कोई गुफा है
इस से ऊपर तो बस बंसी वाले का नाम लेकर ही चढ़ रहा था क्यूंकि इतनी उंचाई पर स्कूल के दिनों के बाद आज ही पहली बार गया था वरना स्कूल टाइम मैं तो पानी कि टंकी पर बिना रुके चढ़ जाते थे लेकिन आज महसूस हो रहा था कि मैं कमजोर हो रहा हूँ मानसिक रूप से..... लेकिन झिलमिल गुफा को देखने कि ललक ही थी जो मैं इतना थकने के बाद भी निरंतर चढ़ता ही जा रहा था ...
कुछ ऊपर जाने के बाद ये बोर्ड आया था जिसको पढ़ कर और वहाँ कि स्थिति देखकर मुझे लगा कि हिन्दुस्तान मैं आज भी अनपढ़ लोग ज्यादा है....खैर ये मेरी विषयबस्तु नहीं है .......
आगे रास्ते मैं एक झुण्ड मिला लंगूरों का मैंने तो मोबाइल और कैमरा छुपा लिया पानी कि बोतल भी छुपा ली ना जाने कब हमला बोल दें इन्हें देख कर लगा कि थोडा रुक लो ये रास्ते से हट जायेंगे तभी चलेंगे लेकिन मुझे नहीं लग रहा था कि वो रास्ते से हटने वाले थे बस उनसे बिना नजर मिलाये हम उन्ही के बीच से गुजर लिए।
कुछ दूर जाकर एक फोटो लिया जोकि लंगूर के बच्चे थे जो शायद अपनी जिज्ञासा वश इस सूखे पेड़ के सिरे पर जाकर बैठे थे...

इन्हें देख कर ही महसूस हुआ कि बच्चे किसी के भी हो होते शैतान ही है क्या जरूरत थी वहन जाकर बैठने की...
मैंने पहली बार लंगूर और बन्दर को एक साथ इस पहाड़ पर ही देखा... नहीं तो मैं तो यही जानता था कि लंगूर और बन्दर मैं ३६ का आंकड़ा रहता है...
थोड़ी ऊपर और चलते रहने के बाद एक बात पर मैंने गौर किया कि आखिर मैं जितना ऊपर जा रहा हूँ बादल उतना ही पास आता जा रहा है,,, थोड़ी हे देर मैं मुझे ये बोर्ड दिखाई दिया तो सोचा इस बोर्ड को ही क्यूँ छोडू आखिर इतनी ऊपर तक अपनी निजी पैरों पर चढ़ कर जो पहुंचा था...यही से मैंने अपने दोस्त को फ़ोन किया था जो मुझसे बहुत ऊपर जा चूका था


यहाँ तक पहुँचते पहुँचते जो हालत हो गयी थी मेरी बस मन कर रहा था कि सो जाऊं लेकिन भला हो उन लोगों का जो इतनी ऊँचाई पर भी नीबू पानी कि दुकान लगा कर बैठे है ठीक है पैसे लेते हैं लेकिन वो नीबू पानी आपको कितनी एनेर्जी देता है उस समय पर, लगता है जैसे जान ही बच गयी नीबू पीकर,,,,
लेकिन हम यही पर रुकने के लिए थोड़े ही चले थे फिर चल दिए आगे॥ थोड़ी ही आगे चलने के बाद पता चला कि अब हमे नीचे उतरना है तो सुन कर और आगे का रास्ता देख कर मन खुस हो गया कि चलो अब इस चडाई से मुक्ति मिली नीचे उतरते गए उतरते गए और पहुँच गए नीलकंठ महादेव जी।
अभी दोपहर के बजे थे मन खुश था लेकिन शरीर दुखी कि इतना पैदल जो चल चुका था...लेकिन हम बिना दर्शन करे ही और ऊपर कि ओर चल दिए क्यूंकि मंजिल तो झिलमिल गुफा थी
ये चडाई तो देखते ही होश उड़ गए क्यूंकि इतना थके होने के बाद ये चडाई चढ़ पाना मुस्किल ही नहीं असंभव था लेकिन मन को तो झिलमिल गुफा देखनी थी लेके बंसी वाले का नाम चलना शुरू सोच लिया था कि अब तो चाहे कुछ हो जाए लेकिन झिलमिल गुफा तो देखनी ही है क्यूंकि रास्ते मैं बहुत कुछ सुन लिया था उसके बारे मैं.....
चलते चलते हालत ख़राब लेकिन मजाल है जो हम पीछे हट जाए ....चलते चलते एक फायदा हो गया कि पार्वती मंदिर देखने को मिल गया क्यूंकि हमे मालूम ही नहीं था कि बीच मैं पार्वती मंदिर भी है...लेकिन यहाँ हम फोटो नहीं खीच पाए क्यूंकि यहाँ मंदिर के बाहर सीडियों पर ही लिखा था
और भाई हम ठहरे नियम कायदे क़ानून मान ने वाले हाँ वो बात अलग है कभी कभी हम भी गंवार बन जाते हैं
यहाँ दर्शन करे और फिर चल दिए झिलमिल गुफा के लिए यहाँ से आगे रास्ता खेतो से होकर जाता है यहाँ हमे लड़के और मिले जो डेल्ही से आये थे वो साथ मैं हो लिए तो लगा कि कोई दिक्कत नहीं होगी, होगी तो ये भी तो अपनी जान बचायेंगे बस चल दिए साथ साथ झिलमिल गुफा २० मिनट चलने के बाद जो नजारा आँखों के सामने था उसे देख कर लगा कि प्रक्रति ने हमारे लिए क्या छोड़ा है और हम इसकी कैसे दुर्गति करते जा रहे हैं॥
यही गुफा है जहाँ बाबा गोरखनाथ ने बैठ कर तपस्या करी थी किसलिए करी थी ?


Tuesday, October 11, 2011

गंगा मैया की गोद मैं एक दिन

भाई बात ऐसी है कि ब्लॉग तो हम पर लिखना आता नहीं है बस ले दे कर हरिद्वार और लक्ष्मण झूला, नीलकंठ महादेव, झिलमिल गुफा, पार्वती मंदिर, और हाँ गणेश गुफा देख कर आया हूँ अभी कुछ दिन पहले ही

ब्लॉग जगत मैं एक सज्जन पुरुष है नाम है
नीरज जाट उन्ही की ब्लॉग पड़ कर मन मैं आया कि मैं भी दुनिया देख ही लूं। यूँ तो मैं मथुरा का रहने वाला हूँ लेकिन आज तक मथुरा से बाहर कभी नहीं गया हूँ ।पहले तो नीरज बाबू के साथ कफनी ग्लासिएर देखने का मन था लेकिन ऑफिस से ज्यादा छुट्टी नहीं मिल पायी थी तो बस लक्ष्मण झूला तक ही जा पाया

तो हुआ यूँ कि घुमने कि मन मैं ब्लॉग पड़ते पड़ते ही गयी थी लेकिन इन्तजार था
छुट्टियों का आखिर कार ये भी हो ही गया कि मुझे एक साथ दिन कि छुट्टी मिल गयी।
अक्टूबर से अक्टूबर तक कि छुट्टी थी तो बस मन मैं गया कि कहीं घूम ही आऊँ चूँकि मैं एक बार लक्ष्मण झूला जा चूका हूँ और कुछ ख़ास देख नहीं पाया था सो मन करा कि वहीँ चले लेकिन मन मैं था कि बद्रीनाथ जी
जाये

(क्यूँकि मथुरा से रात को एक स्लीपर बस चलती है १० बजे जो हमे हरिद्वार सुबह बजे पहुंचा देती है)

तो बस शाम को ऑफिस से निकलते ही सबसे पहले पहुंचा बस स्टैंड बस कि बुकिंग के लिए , लेकिन नसीब इतना ख़राब कि उस दिन सादा कुर्सी वाली बस थी , स्लीपर बस ख़राब होने के कारण आज स्लीपर बस नहीं थी तो क्या जाना तो तय था सो उसी कि बुकिंग करा ली सीटों की क्यूंकि मेरे साथ दोस्त और थे जो घुमने जाना चाहते थे
जो लड़के और थे वो राजी भी सिर्फ इस बात पर थे की स्लीपर बस से तो कोई बात नहीं है हम भी चलेंगे लेकिन जब उन्हें पता चला की बस कुर्सी बाली है तो मुझे क्या क्या सुन ना पड़ा था वो तो मैं ही जानता हूँ ...

खैर बस सही १० बजे चल दी और हम तीनो दोस्त सफ़र का आनंद लेते हुए जैसे तैसे सुबह सही .२० पर हरिद्वार बस स्टैंड पर पहुँच गए,( चूँकि हम यहाँ से सोच कर तो ये गए थे की बद्रीनाथ जी घूम कर आयेंगे )तो बस स्टैंड से ही ऋषिकेश जाने वाली बस मैं बैठ गए और करीब ३५ मिनट मैं ही ऋषिकेश के बस स्टैंड पर पहुँच गए।
मैंने जो नजारा बस से नीचे उतरकर देखा तो बस मन यही कह रहा था की रुक जा और इस द्रश्य को आँखों मैं कैद कर ले रोड पर आते ही मैंने देखा की मैं तीन साइड से पहाड़ों से घिरे स्थान मैं खड़ा हूँ , वहीँ मेरे दिल ने सोच लिया था की मेरी दिन प्रक्रति की गोद मैं कटने वाले हैं , लेकिन हमे जाना तो बद्रीनाथ जी था सो दिमाग मैं चल रहा था की जल्दी से बद्रीनाथ पहुँच जाए बस,,, लेकिन ईश्वार को कुछ और ही मंजूर था बद्रीनाथ की सिर्फ एक ही बस थी और वो भी सुबह बजे की। हम बहुत दुखी हुए की यार ये तो सब पानी हो गया यहाँ तक आना।
लेकिन तभी दिमाग मैं आया लक्ष्मण झूला, राफ्टिंग, नीलकंठ महादेव, झिलमिल गुफा, पार्वती मंदिर,

बस हम चल पड़े लक्ष्मण झूला राफ्टिंग के लिए, लक्ष्मण झूला पर एक राफ्टिंग ब्रोकर से बात करी तो ४०० रूपये पर हेड पर राजी हो गया १२ किलोमीटर की राफ्टिंग के लिए, लेकिन तब तक वहां कोई राफ्ट नहीं थी तो उसने कहा की अभी घंटे मैं राफ्ट ऊपर जायेगी तब हमारा नंबर आएगा, तो हम लक्ष्मण झूला देखने चले गए पास मैं ही था
धुप बहुत थी तो हमने चश्मे और टोपी खरीदी थी कई टोपी लगा लगा कर देखते रहे टोपी तो पसंद आई नहीं हाँ चश्मे जरूर
लिए

तब तक हमारे राफ्ट वाले का फ़ोन गया कि जाओ ऊपर जाना है हम तीनो तो बस तैयार ही थे,
आये और तुरंत एक बोलेरो मैं बैठ गए जिसमें बैठ कर हमे ऊपर शिवपुरी जाना था उसमे पहले से ही लड़के बैठे थे जिसमे लड़के तो गुरु तेग बहादुर मेडिकल कॉलेज के छात्र थे और एक लड़का ऑस्ट्रेलिया का था नाम था जेरी , रास्ते मैं नीर गट्टू एक झरना था (जिसे देखने कि तमन्ना दिल मैं रह गयी लेकिन उसे देखूँगा जरूर) हम आगे चलते गए बस पहाड़ो को देखते ही इतनी ही देर मैं हमारी मंजिल शिवपुरी गयी जहाँ से हमे राफ्टिंग शुरू करनी थी,


हमारे राफ्टिंग के गुरु थे राज कुमार उर्फ़ राज भाई यहाँ द्रश्य ऐसा था कि फोटो खीचने से अपने आप को रोक ही नहीं पाया और दनादन ५०-६० फोटो खींच डाले।


यहीं पर एक परांठे कि दुकान थी

इससे परांठे पैक करा लिए, परांठा भी इतना स्वादिस्ट कि आदमी - तो खा ही जाए और वो भी सिर्फ १२ रूपये का, राज भाई ने कहा था कि पीने के लिए पानी कि बोतल और खाना खाना हो तो यहीं खा लो क्यूंकि आगे सिर्फ पानी ही पानी है जल्दी से हमने परांठे खाए, जल्दी जो थी राफ्टिंग की, ये है राज भाई.......

बस फिर क्या था थोड़ी ही देर मैं हम राफ्ट मैं बैठ कर झूलने वाले थे तो हमे थोड़ी सी जानकारी दी थी राज भाई ने कि राफ्ट को कैसे चलाना है और कैसे कैसे वो मार्गदर्शन करेंगे और हमे कैसे उन्हें फोलो करना है एक बात पर जोर देकर कहा था कि अगर राफ्ट पलटे तो राफ्ट मैं किनारे पर एक रस्सी होती है को पकड़ लेना, कोई डूबेगा नहीं सब अपने आप ऊपर जायेंगे क्यूंकि हमे एक लाइफ गार्ड जाकेट पहनाई गयी थी जोकि ७२ घंटे तक पानी मैं आपको डूबने से बचाने मैं शक्षम है मैं निश्चिन्त हो गया था कि कुछ नहीं होगा
हम सभी गंगा मैया का नाम लेकर राफ्ट मैं बैठ गए और चलाने लगे चप्पू (चप्पू को पैडल कहते है राफ्टिंग मैं )
बीच बीच मैं - बड़े बड़े रैपिड आये उन्हें तो हम पार कर गए ( उन रैपिड को राफ्ट मैं बैठ कर पार करने का जो आनद था मैं उसे बयां नहीं कर सकता हूँ ) लेकिन रैपिड पार करने के बाद कोई गोल्फ रैपिड के नाम से रैपिड आया था जहाँ पर एक बड़ी सी कम से कम १०-१२ फीट कि लहर आई और हमारी राफ्ट पलट गयी।
चूँकि हम लोगों मैं से सिर्फ कोई ही तैरना आता था लेकिन उसमे से भी तो इतनी बुरी तरह से डर गए कि वो कहने लगे कि हमे उतार दो हम पैदल ही जायेंगे जैसे तैसे उन्हें संभाला गया लेकिन वो जो - मिनट हमने गंगा जी मैं बिताये हमारी राफ्ट हमारे ऊपर हम पानी मैं कितनी अन्दर तक गए थे किसी को नहीं पता था जब मैं बहार निकला तो सबसे पहले मेरी नजर मेरे दोस्तों को ढूंड रही थी क्यूंकि उनमे से किसी को भी तैरना नहीं आता है लेकिन उनमे से कोई भी मुझे दिखाई नहीं दिया मेरा दिल बैठ गया मैं पल के लिए मर सा गया था शायद क्यूंकि उन्हें मैं ही अपने साथ ले गया था राफ्टिंग के लिए, पानी के बाहर आते ही सबसे पहले मेरी नजर पड़ी हमारे गाइड पर जो सबसे रस्सी को पकड़ने के लिए कह रहा
था क्या फुर्ती दिखाई थी उसने जो कि उस समय जरूरी भी थी अगर थोड़ी सी देर हुई होती तो कुछ भी हो सकता था लेकिन एक एक करके मेरे दोस्त मुझे दिख गए थे लेकिन सबके चेहरे पर ना जाने कैसा मातम सा दिखाई दे रहा था एक पल को ऐसा लगा था कि जीते जी मौत को देख लिया था हमने, सबका जोश ठंडा पड़ चुका था गंगा जी के पानी की तरह
मौत को लगभग छु कर जो निकले थे हम लेकिन मैं बहुत ही जल्दी नोर्मल हो गया था क्यूंकि मैं और मेरे दोस्त जिन्दा थे जोकि मेरे लिए बहुत ख़ुशी कि बात थी मैं सब भूल चुका था एक सपने कि तरह लेकिन इतनी है देर मैं जो मेडिकल के छात्र थे उनमे से एक जिसका नाम
प्रिंस था रोने लग गया और उतरने के लिए कहने लगा उसे जैसे तैसे समझाया गया कि भाई भूल जा इसे और आगे ध्यान लगा क्यूंकि आगे जो लहरें हमे दिख रही थी उन्हें देख कर तो मुझे नहीं लगता कि हम आगे जाने के लिए तैयार थे लेकिन राज भाई ने बड़ी ही कुशलता से वो लहरें पार करा दी और फिर तो सारा सफ़र सिम्पल ही रहा, थोड़ी दूर चलने के बाद एक जगह आयी जहाँ हर राफ्ट रुक रही थी क्यूंकि एक ऊँचे से पत्थर से लोग गंगा जी मैं कूद रहे थे, मेरे भी मन मैं पहली ही बार मैं गया था कि बस उस पत्थर से मैं भी गंगा जी मैं कूदूँगा जैसे ही ऊपर गया और नीचे देखा तो सारे अरमान पानी हो गए क्यूंकि ये इतना आसान नहीं था जितना मैं सोच रहा था। लेकिन मैं गंगा मैया का नाम लेकर कूद ही गया क्यूंकि मन मैं ये बात गयी थी कि अगर गंगा मैया को लेना ही था तो वहीँ ले लिया होता... और पहले ही डूबने कि वजह से पता लग गया था कि लाइफ गार्ड हमे डूबने नहीं देगा चाहे कुछ भी हो जाए तो बस कूद लगा दी .... कूदते समय जो हालत थी बस बता ही नहीं सकता कि कितना अच्छा लगा था सो बार और कूद लिया जब तक हमारी राफ्ट चलने को तैयार थी क्यूंकि मैं कूदू या ना कूदू इसी उधेड़ बुन मैं १५ मिनट ख़राब कर चुका था

थोड़ी ही दूर चप्पू चलाने के बाद हमे लक्ष्मण झूला दिखने लगा था लक्ष्मण झूला के पास आते आते जो
गंगा किनारे के द्रश्य आँखों के सामने थे उन्हें देख कर तो गोवा के बीच भी फीके लगने लगे, (तब अहसास हुआ कि ये गोरे लोग इतने संख्या मैं लक्ष्मण झूला जैसे दुर्लभ स्थान पर करते क्या है ) खैर हमे क्या मतलब उनसे अपनी राफ्ट को राम झूला पर ख़तम करके अपने अपने मोबाइल और कैमरे को लेकर हम चल दिए फिर मन करा कि एक फोटो तो होना ही चाहिए आखिर राफ्टिंग के दौरान राफ्ट को पलते हुए जो देखा था

और बस उस दिन हम राम झूला से वापस लक्ष्मण झूला आये गंगा जी मैं स्नान किये तरीके से क्यूंकि अलमोस्ट सुबह से २५-३० बार डुबकी तो लगा ही चुके थे गंगा जी मैं लेकिन फिर भी शाम के बजे के आस पास गंगा जी का पानी इतना ठंडा था कि नहाना तो दूर बन्दा हाथ ना
डूबा सके पानी मैं,
वहीँ लक्ष्मण झूला मैं देवी का पांडाल सजा हुआ था जोकि बहुत ही मनोहारी द्रश्य था आप भी देखिये

ये मेरा दिन लक्ष्मण झूला मैं राफ्टिंग के दौरान कटा अभी दूसरा दिन भी बाकी है उसमे
सबको
गणेश गुफा और झिलमिल गुफा घुमाऊँगा

लेकिन एक बात कहना चाहता हूँ कि राफ्टिंग करो तो पहले बीमा जरूर करवा लेना कुछ भी हो सकता है