Thursday, October 20, 2011

झिलमिल गुफा पार्ट-1

अक्टूबर कि सुबह होटल के रूम मैं ही तय कर लिया कि आज नीलकंठ महादेव और झिलमिल गुफा देखने जायेंगे पैदल पैदल........
नीरज जाट कि पैदल यात्रा का भूत जो सवार था अपने ऊपर..... सो सुबह सुबह तैयार होकर होटल छोड़ दिया था सुबह ही क्यूंकि आज शाम को तो अपने अपने घर वापस लौटना था तो क्यूँ होटल का किराया अपने सर पर लेते ...
होटल से बाहर निकल कर एक ढाबा कम दुकान ज्यादा पर मस्त आलू के परांठे चाय के साथ खाए और चल दिए राम झूला कि ओर क्यूंकि हमने उस ढाबा कम दुकान ज्यादा से पूछा था कि नीलकंठ जी के लिए पैदल रास्ता कहाँ से है तो उसने ही बताया था कि राम झूला से गीता आश्रम के सामने से रास्ता सीधा नीलकंठ जी को जाता है, उसने हमे पैदल जाने से मना भी किया था कि इन दिनों मैं रास्ता खाली रहता है बहुत कम लोग जाते है इस रास्ते से, लंगूर भी बहुत होते है तो तुम जीप से जाओ,
लेकिन हम कहाँ मानने वाले थे
पहुँच गए राम झूला, लेकिन अब हमारे साथ एक प्रॉब्लम थी कि हम तीनो कि पीठ पर अपने अपने बैग लादे हुए थे जिनको साथ लेकर ऊपर चढ़ना बेहद कस्टकारी हो सकता था तो हमने सोचा कि इन बैग को किसी चाय वाले कि दुकान पर रख देते है शाम को लौटते समय ले लेंगे. एक चाय वाले से बात करी तो उसने मना कर दी लेकिन भला हो उसका कि उसने हमे गीता आश्रम का सुझाव दे दिया, लपक के गीता आश्रम पहुंचे, वहाँ अपने अपने बैग रखे प्रत्येक बैग के 10 रूपये लगे, गीता आश्रम शाम को 10 बजे बंद हो जाता है तो उन्होंने हमे बता दिया कि रात को १० अजे से पहले जाना, बैग से पानी कि बोतल साथ ले ली, कैमरा तो पहले से ही जेब मैं था अपना आई कार्ड जेब मैं ही रख लिया बैग से निकाल कर, और चल दिए हम तीनो नीलकंठ महादेव और झिलमिल गुफा देखने, करीब करीब किलो मीटर जाने के बाद मेरा मन करा कि यारो अब तो एक फोटो हो जाए कैमरा निकल कर ५-फोटो दे मारे. अचानक मुझे याद आया कि मैं कैमरे के सेल बैग मैं ही भूल आया हूँ जो मैंने पिछली रात को बहुत मेहनत करके चार्ज किये थे ( हुआ यूँ था कि जिस होटल मैं हम रुके थे उसके लाइट के बोर्ड मैं पॉवर सोकेट लूज था जिसकी वजह से चार्जर टीक से लग नहीं प् रहा था ) खैर एक बार को तो मन मैं आया कि वापस जाकर सेल ले आऊं फिर सोचा रहने दो अब तो जब तक सेल चलेंगे तब तक देखा जाएगा नहीं तो मोबाइल तो था ही फुल चार्ज,
बस आगे चल दिए थोडा सा ही चले थे कि एक रास्ते का बोर्ड लगा हुआ था


मुझे लगा कि बस थोडा ही ऊपर होगा लेकिन मुश्किल से ५०० मीटर ऊपर कि तरफ चलने पर मुझे लगा कि मैंने गलती कर ली पैदल आकर थोड़ी देर बैठा और सोचने लगा

सोच ही रहा था कि पीछे से एक बिहारी दम्पति आती हुयी दिखाई दी। इस फोटो मैं जो पीछे औरत है उसके सर पर उसका बैग रखा है और वो बड़े आराम से बिना थके चले जा रही थी और इसके पति कि गोद मैं एक बच्चा था तो मैंने सोचा कि क्या मैं इनसे भी गया गुजरा हूँ जो इतनी जल्दी थक गया बस फिर क्या था
उठा और चलना शुरू कर दिया लौटने का विचार मन से त्याग दिया मन मैं ये सोचा कि इतनी दूर आने के बाद सिर्फ इसलिए नहीं लौटूंगा कि चडाई बहुत थी इसलिए पैदल नहीं गया।
थोड़ी सी ऊपर जाने पर एक नीबू पानी कि दूकान आई तो जान मैं जान आई कि कुछ तो है इन पहाड़ो मैं...

गिलास नीबू पानी अपनी बोतल मैं ही करवा लिया.... १० रूपये प्रति गिलास था लेकिन वो मुझे उस पहाड़ पर महंगा नहीं लगा.... उस दुकान के पास ही दो बड़े बड़े पत्थर ऐसे पड़े हुए थे जैसे लग रहा था कि कोई गुफा है
इस से ऊपर तो बस बंसी वाले का नाम लेकर ही चढ़ रहा था क्यूंकि इतनी उंचाई पर स्कूल के दिनों के बाद आज ही पहली बार गया था वरना स्कूल टाइम मैं तो पानी कि टंकी पर बिना रुके चढ़ जाते थे लेकिन आज महसूस हो रहा था कि मैं कमजोर हो रहा हूँ मानसिक रूप से..... लेकिन झिलमिल गुफा को देखने कि ललक ही थी जो मैं इतना थकने के बाद भी निरंतर चढ़ता ही जा रहा था ...
कुछ ऊपर जाने के बाद ये बोर्ड आया था जिसको पढ़ कर और वहाँ कि स्थिति देखकर मुझे लगा कि हिन्दुस्तान मैं आज भी अनपढ़ लोग ज्यादा है....खैर ये मेरी विषयबस्तु नहीं है .......
आगे रास्ते मैं एक झुण्ड मिला लंगूरों का मैंने तो मोबाइल और कैमरा छुपा लिया पानी कि बोतल भी छुपा ली ना जाने कब हमला बोल दें इन्हें देख कर लगा कि थोडा रुक लो ये रास्ते से हट जायेंगे तभी चलेंगे लेकिन मुझे नहीं लग रहा था कि वो रास्ते से हटने वाले थे बस उनसे बिना नजर मिलाये हम उन्ही के बीच से गुजर लिए।
कुछ दूर जाकर एक फोटो लिया जोकि लंगूर के बच्चे थे जो शायद अपनी जिज्ञासा वश इस सूखे पेड़ के सिरे पर जाकर बैठे थे...

इन्हें देख कर ही महसूस हुआ कि बच्चे किसी के भी हो होते शैतान ही है क्या जरूरत थी वहन जाकर बैठने की...
मैंने पहली बार लंगूर और बन्दर को एक साथ इस पहाड़ पर ही देखा... नहीं तो मैं तो यही जानता था कि लंगूर और बन्दर मैं ३६ का आंकड़ा रहता है...
थोड़ी ऊपर और चलते रहने के बाद एक बात पर मैंने गौर किया कि आखिर मैं जितना ऊपर जा रहा हूँ बादल उतना ही पास आता जा रहा है,,, थोड़ी हे देर मैं मुझे ये बोर्ड दिखाई दिया तो सोचा इस बोर्ड को ही क्यूँ छोडू आखिर इतनी ऊपर तक अपनी निजी पैरों पर चढ़ कर जो पहुंचा था...यही से मैंने अपने दोस्त को फ़ोन किया था जो मुझसे बहुत ऊपर जा चूका था


यहाँ तक पहुँचते पहुँचते जो हालत हो गयी थी मेरी बस मन कर रहा था कि सो जाऊं लेकिन भला हो उन लोगों का जो इतनी ऊँचाई पर भी नीबू पानी कि दुकान लगा कर बैठे है ठीक है पैसे लेते हैं लेकिन वो नीबू पानी आपको कितनी एनेर्जी देता है उस समय पर, लगता है जैसे जान ही बच गयी नीबू पीकर,,,,
लेकिन हम यही पर रुकने के लिए थोड़े ही चले थे फिर चल दिए आगे॥ थोड़ी ही आगे चलने के बाद पता चला कि अब हमे नीचे उतरना है तो सुन कर और आगे का रास्ता देख कर मन खुस हो गया कि चलो अब इस चडाई से मुक्ति मिली नीचे उतरते गए उतरते गए और पहुँच गए नीलकंठ महादेव जी।
अभी दोपहर के बजे थे मन खुश था लेकिन शरीर दुखी कि इतना पैदल जो चल चुका था...लेकिन हम बिना दर्शन करे ही और ऊपर कि ओर चल दिए क्यूंकि मंजिल तो झिलमिल गुफा थी
ये चडाई तो देखते ही होश उड़ गए क्यूंकि इतना थके होने के बाद ये चडाई चढ़ पाना मुस्किल ही नहीं असंभव था लेकिन मन को तो झिलमिल गुफा देखनी थी लेके बंसी वाले का नाम चलना शुरू सोच लिया था कि अब तो चाहे कुछ हो जाए लेकिन झिलमिल गुफा तो देखनी ही है क्यूंकि रास्ते मैं बहुत कुछ सुन लिया था उसके बारे मैं.....
चलते चलते हालत ख़राब लेकिन मजाल है जो हम पीछे हट जाए ....चलते चलते एक फायदा हो गया कि पार्वती मंदिर देखने को मिल गया क्यूंकि हमे मालूम ही नहीं था कि बीच मैं पार्वती मंदिर भी है...लेकिन यहाँ हम फोटो नहीं खीच पाए क्यूंकि यहाँ मंदिर के बाहर सीडियों पर ही लिखा था
और भाई हम ठहरे नियम कायदे क़ानून मान ने वाले हाँ वो बात अलग है कभी कभी हम भी गंवार बन जाते हैं
यहाँ दर्शन करे और फिर चल दिए झिलमिल गुफा के लिए यहाँ से आगे रास्ता खेतो से होकर जाता है यहाँ हमे लड़के और मिले जो डेल्ही से आये थे वो साथ मैं हो लिए तो लगा कि कोई दिक्कत नहीं होगी, होगी तो ये भी तो अपनी जान बचायेंगे बस चल दिए साथ साथ झिलमिल गुफा २० मिनट चलने के बाद जो नजारा आँखों के सामने था उसे देख कर लगा कि प्रक्रति ने हमारे लिए क्या छोड़ा है और हम इसकी कैसे दुर्गति करते जा रहे हैं॥
यही गुफा है जहाँ बाबा गोरखनाथ ने बैठ कर तपस्या करी थी किसलिए करी थी ?


2 comments:

  1. फ़कीरा महाराज आपकी ये पोस्ट देख कर तबीयत खुश हो गयी, सच बहुत ही अच्छा लगा, बिल्कुल देशी अंदाज। फ़ोटो भी गजब, सब मस्त। और एक अपनी बात जब पहली बार नीलकंठ गया था तो बिना बैठे, बिना पानी पिये सिर्फ़ तीन घन्टे में, अरे भाई बारिश हो रही थी, पानी पीने व बैठने का मौका ही नहीं मिला था। रही बात तीन घन्टे में तो भाई मैदान हो या पहाड अपने लिये दोनों की रफ़्तार एक समान रहती है। जिसके लिये जी तोड मेहनत रोज करनी होती है, अगर आलस दिखाते हो तो उसे छोड दो, फ़िर देखना मस्त बिंदास, सबसे अलग जय भोले नाथ सबके साथ।

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  2. कुलदीप भाई, खाली मैदान था, बम भोले के दर्शन भी कर लेने थे। हद से हद पांच मिनट फालतू लगते।

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